Monday 4 January 2016

kalam

शब्द कलम को ढूंढ्ते है कलम शब्दों को  ना मालूम क्यो दोनों दिशा भ्रभित है कलम ने उद्य  होते सूर्य से   कहा कहीं तुमने शब्दों  को देखा है सूरज चुप रहा | कलम ने किरण से पूछा तुमने शब्द को देखा है | कोई उत्तर नही मिला | तभी कहीं से स्वर सुनाई दिए -मेरे तो गिरधर गोपाल दूसरों ना कोई  और  तभी कलम से शब्द मिला कलम ने कहा -आओ  में तुम्हे  नया रंग दूँ | यह हम ही थे जिन्होंने राम कथा को रंग दिया  | कृष्ण की गीता  को हर घर पहुँचाया |  साहित्य सर्जना  के पीछे  भी हम ही है शब्द सुनो यह  संक्रमण काल है | दूसरी संस्कृतियाँ   हम पर प्रहार कर रही है लेकिन शब्द तुम बद रंग मत होना नहीं तो में टूट जाऊँगी  साहित्य  भावना हीन होकरनिष्प्राण हो  जायेगा | हमें तो गीतों में गुंजार भरनी  है  भावो में झंकार भरनी है   और कहना है  सबका शुभ हो

No comments:

Post a Comment