Tuesday 26 January 2016

gantantr

गणतन्त्र के आँसू  - विश्व में अनेक शासन हुए लेकिन सफल नही हो सके क्योकि वे जन भावनाओं का दर्पण नही बन पाए | जन आकांक्षाओं  को पूरा कर सके उसके लिए राजतंत्र को स्वीकार किया | पृथु  पहला राजा माना जाता है लेकिन धीरे-धीरे  इसमे भी विकृति आने लगी  इसी तरह कई शासन व्यवस्थाएँ आई लेकिन शोषण का प्रतीक बन कर रह गयी | अन्तिम रुप में लोकतत्र को ही सावधिक श्रेष्ठ मान गया लोकतंत्र शक्ति का केन्द्र जनता को स्वीकार किया गया | जनता का; जनता द्वारा ; जनता के लिये शासन का स्वरूप होता है | इसमे बिना रक्त पात के आसानी से जनता द्वारा सत्ता परिवर्तन हो जाता है | इसी का रुप है -गण-तंत्र जनता के द्वारा चुने गए प्रतिनिधियो द्वारा शासन - भारत में इस आदर्श व्यवस्था को स्वीकार करते हुए संविधान 26 जनवरी1950 को जनता को साक्षी मानते हुए आत्म अर्पित किया गया | सबसे बड़े गौरव की  बात  यह है कि भारत का प्रथम अधिकारी भी जन - आकांक्षाओं का दर्पण है | गणतन्त्र के इस भव्य भवन का आधार है-समता- क्षमता -ममता |आज इसी की आवश्यकता है | सबको योग्यतानुसार  के समान अवसर  मिलें | समाज की अंतिम सीढ़ी तक लाभांश पहुँचे | un to this last  इसकी आत्मा है |  सबमें सौहार्द बना रहे -यह ममता का भाव है | मानवीय संसाधन को सक्षम हो | राजनैतिक दल गणतन्त्र के प्रहरी है | इनको संकीर्ण राजनीति का पथ  त्याग कर जन-हित के बारे में सोचना चाहिए |संसद जिसमे जन - भावनाओं के फूल खिलते है  उसकी  गरिमा बनाये रखे  |
शब्दों की मर्यादा तो होनी ही चाहिए | पक्ष-विपक्ष में तर्क वितर्क हो लेकिन शोर शराबा नही |  विकास का मार्ग अवरुद्ध नही हो | इससे  गणतंत्र घायल होता है |अश्रु पूरित नेत्रों से आज 67 वां सबसे यह निवेदन करता है कि मेरी गरिमा  बनाये रखे |

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