अनचाही पीड़ा के कठोर करो ने भावों की भूमि को ऊसर बना दिया है इसको कैसे उर्वरा बनाया जाए प्रभु तुम्ही बताओ कौनसे जल से मानस के आँगन में सिंचाई करी जाए जिससे ख़ुशियों की क्यारी बन सके प्यार के; ममता और वात्सल्य के गुलाब खिल सके | तभी संध्या के द्वार पर थका थका सा सूरज का रथ आया और मानस को मीठी थपकी देकर कहने लगा जीवन साँझ -उषा का आँगन है| भयंकर आँधी तूफान के बाद भी निर्माण तो रुकता नही | समय का रथ आगे बढ़ता है कभी खुशी देता है तो कभी गम | इस रथ पर बैठकर नन्हीं चिड़िया तूफान को चुनौती देती है सबको देती है एक नयी प्रेराणा देती है | शुभ संध्या
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