Sunday 27 December 2015

chunoti

अनचाही पीड़ा के कठोर करो ने भावों की भूमि को ऊसर बना दिया है इसको कैसे उर्वरा बनाया जाए प्रभु तुम्ही बताओ कौनसे जल  से  मानस के आँगन में सिंचाई करी जाए  जिससे ख़ुशियों की क्यारी बन सके प्यार के; ममता और वात्सल्य के गुलाब खिल सके | तभी संध्या के द्वार पर थका थका सा सूरज का रथ आया  और मानस को मीठी थपकी देकर कहने लगा  जीवन साँझ -उषा का आँगन है| भयंकर आँधी तूफान  के बाद भी निर्माण तो रुकता नही | समय का रथ आगे बढ़ता है कभी खुशी देता है तो कभी गम | इस रथ पर  बैठकर नन्हीं चिड़िया तूफान को चुनौती देती है  सबको देती है  एक नयी प्रेराणा देती है | शुभ संध्या

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